लम्बा चौड़ा
लेख मिला है दक्कनी हिन्दी के बारे में।
और भी
बहुत कुछ लिखा है यहाँ। अग़र आपने किसी ऑटो वाले से हिन्दी सुनी हो - वो बोल्या, ये गलीच है, क्या भी नहीं, काय कू, तो वो दक्कनी है।
मैं तो इसे ऑटो वालों की बोली माने बैठा था लेकिन इसका तो पूरा साहित्य,
कवि भी हैं।
अब मैं जा को आता हूँ।