मिथ्या

Aug 11, 2011 20:10




घुंघरू के मध्यम बोलों ने
कुछ कहा फुसफुसाकर
गुनगुनाकर फिर होठों ने
हौले हौले माहौल बनाया
और तुम्हारी आँखों की गहराइयों में
मैने अपने आप को
डूबते, उतराते, मदमाते पाया

जाने कब हुयी सुबह
सूर्य किरण ने घटाओं से झांक कर देखा
घुंघरू के बोलों का तीव्रतर हो थम जाना
होठों पर छिडे तरानों का कंठ ही में घुल जाना
आँखों की विशाल गहराई का
पलकों के भीतर छुप जाना
और टूटना एक स्वपन का

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prose n' poetry, hindi poems

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